Thursday, 4 August 2011

BAN ON POLY BAG !

Polybags have today become the part of our daily necessity. We are using them in different sizes without paying any attention towards their adverse effect on our health and hygiene. In the February 2010, Govt. banned on the use of poly bags. Specially, an officially order was released by the govt. to the health departments in different distt. for implement of this law strictly. Government said that poly bag is very-very harmful and unhygeine for the health. The use of the poly bag is strictly prohibited. To make our city poythene free, there were so many awareness campaign was also held. People were also inspired to use paper, cloth and non-wooven cloth bags. Every year about 200 animals died because of poly bags. Around 500,000 plastic bags were collected in Australia during clean up day. Each day 250 ton of plastic waste comes out of various colonies of major cities in many countries like India and Pakistan. Each year around 100 million barrels of oil is required to make the world's plastic bag. There is no effect on the public regarding the rules related to poly bags, but they don't know this is so harmful to the health and spoil their future.

-ARKIN, MMC 1st, CDLU

लोकपाल या जोकपाल!

    लोकपाल, जिसे हम लीगल रिप्रेज़ेन्टिव भी कहते हैं, मुख्यत: संस्कृत के दो शब्दों का मेल है। 'लोकाÓ और 'पालाÓ यानी लोगों का रक्षक। लोकपाल के बारे में इसलिए सोचा गया ताकि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जा सके। इसे सबसे पहले हमारे समक्ष गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने प्रस्तुत किया। उनका मत है कि हमारा देश लोकतांत्रिक है। लेकिन विडम्बना है कि देश पर अधिकतर स्वार्थजन्य लोग ही काबिज हैं। वे जैसा चाहते हैं, वैसा होता है। आम लोग तो उन्हें देश को चलाने के लिए प्रतिनिधित्व सौंपते हैं, लेकिन वे केवल देश को 'चरानेÓ का कार्य ही कर रहे हैं।  इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। अन्ना हजारे ने इसके विरुद्ध अवाम को लामबंद करने की सोची। इस सोच का नतीजा रहा कि उन्होंने जन लोकपाल बिल पारित करवाने की ठानी। इसके तहत हर विभाग, हर मंत्रालय के निम्न से लेकर उच्च अधिकारी के लिए जवाबदेही तय की गई। हर काम प्रत्यक्ष रूप से हो। जनता जाने कि देश में क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है? उनके हठ और देश की जनता के उनको समर्थन के कारण सरकार ने भी इस बिल को पारित करवा दिया। लेकिन जैसा अन्ना चाहते थे, वैसा नहीं हुआ। जन लोकपाल में मुख्यत: दो बातों का उल्लेख किया गया। प्रधानमंत्री की लोकपाल के तहत जवाबदेही तय की जाए, न्यायपालिका को भी इसमें शामिल किया जाए। लेकिन जो लोकपाल बिल पारित हुआ उसमें इन बातों की अवहेलना की गई। न तो प्रधानमंत्री को शामिल किया गया और न ही न्यायपालिका को। इसलिए अन्ना हजारे ने इस बिल को जनता के साथ मजाक करार देते हुए 'जोकपालÓ कह डाला। लोकपाल को किसी भी प्रकार की खास शक्ति नहीं दी जा रही है और खास बात यह है कि लोकपाल को भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए अधिकार नहीं दिए गए हैं। भ्रष्टाचार ही एक ऐसा तत्व कहा जा सकता है जिसके कारण जन लोकपाल बिल की आवश्यकता महसूस की गई। सरकार द्वारा पारित बिल ने लोकपाल को अपंग बना दिया है। लोकपाल के नाम पर केवल खेल खेला जा रहा है। बड़ा सवाल यह है कि यदि लोकपाल के पास भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की शक्ति ही नहीं है, तो ऐसे लोकपाल की जरूरत क्या है। ऐसे तो देश पहले की तरह गर्त में ही जाएगा। इसलिए हमें चाहिए कि एकजुट होकर लोकपाल की शक्तिशाली बनवाने पर जोर दिया जाए ताकि भ्रष्टाचारी इस देश को नोंच-नोंच कर न खा पाएं।
-आर्किन
एम.एम.सी. प्रथम
सीडीएलयू